चंडीगढ़ | 11 जून 2025 : हरियाणा सरकार के श्रम मंत्री अनिल विज ने श्रमिकों के कल्याण से जुड़े एक अहम बोर्ड “हरियाणा भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड” को भंग करने की सिफारिश कर दी है। मंत्री विज का आरोप है कि बोर्ड में ऐसे लोगों को जगह दी गई है जो न तो श्रमिक हैं और न ही निर्माण कार्य से कोई वास्ता रखते हैं। उन्होंने इसे सिर्फ “नेतागिरी करने वालों का जमावड़ा” बताया।
क्या है पूरा मामला?
मार्च 2024 में गठित इस बोर्ड में कई ऐसे सदस्य नियुक्त किए गए जो श्रमिकों के हितों की बजाय अपने निजी या राजनीतिक एजेंडे चला रहे हैं। विज के अनुसार, बोर्ड में यूनियन से जुड़े नेताओं को खानापूरी के तहत शामिल किया गया, जो न तो एक्ट के अनुरूप हैं और न ही श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
बोर्ड में नहीं है महिला प्रतिनिधित्व, एक्ट का उल्लंघन
हरियाणा श्रम कानून के अनुसार, बोर्ड में 10 सदस्यों का होना आवश्यक है, जिनमें एक महिला श्रमिक का प्रतिनिधित्व भी जरूरी है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वर्तमान बोर्ड में किसी भी महिला को शामिल नहीं किया गया, जो एक्ट का खुला उल्लंघन है। यही नहीं, जिन श्रमिकों और ठेकेदारों को इसमें शामिल होना था, उनकी जगह बाहरी यूनियन नेताओं को प्राथमिकता दी गई।
मंत्री विज ने लगाई फटकार, अधिकारियों को दी चेतावनी
विज ने हाल ही में हुई एक समीक्षा बैठक में श्रम विभाग के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई और स्पष्ट किया कि अब मनमानी नहीं चलेगी। उन्होंने कहा कि अब से बोर्ड के गठन की प्रक्रिया पूरी तरह श्रम एक्ट के तहत होगी और भ्रष्टाचार या सिफारिश संस्कृति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। विज ने कहा, “मेरे पास कई अधिकारियों की कुंडली आ चुकी है, जो भी लापरवाही करेगा, उस पर कार्रवाई होगी।”
भविष्य में पारदर्शी तरीके से होगा बोर्ड का गठन
मंत्री अनिल विज ने कहा कि आगे से बोर्ड में सिर्फ वे लोग शामिल होंगे जो वास्तव में निर्माण कार्य या श्रमिक वर्ग से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार में किन सिफारिशों पर लोगों को जगह दी गई, इसका उन्हें पता नहीं, लेकिन अब कोई भी नियुक्ति कानूनी प्रक्रिया और योग्यता के आधार पर ही होगी।
राजनीति और सिफारिश के खिलाफ विज का कड़ा रुख
अनिल विज का यह फैसला उन तमाम यूनियन नेताओं और राजनेताओं के लिए सीधा संदेश है जो बोर्ड जैसे संस्थानों का इस्तेमाल अपनी नेतागिरी और प्रभाव बढ़ाने के लिए करते हैं। अब तक जहां बोर्ड सिर्फ “बैठकों की खानापूरी” तक सीमित था, वहीं विज का यह कड़ा रुख संकेत दे रहा है कि अब श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और कल्याण के कार्य प्राथमिकता में रहेंगे।